भीगना
छत पे दरवाजे के ऊपर कुछ एक फीट चौड़ा छज्जा बना है।बारिश बहूत तेज़ होने लगी तो यही आके बैठ गई। वैसे तो बारिश होने पर मैं नीचे चली जाती हूं पर शायद आज मन कुछ ठीक नहीं लग रहा था तो यही बैठ गई। चप्पल उतार कर पालती मार के बैठी तो लगा जैसे बरस हो गए ज़मीन पर बैठे इस तरह बारिश में । याद आ रहा है कैसे अम्मा के यहां ऐसे बैठा करते थे सब या मामी के यहां। अरे हां अम्मा मतलब दादी के यहां,हमारे यहां दादी को सभी अम्मा कहते है । खैर मन भारी लग रहा था आज । बारिश की हवा का एहसास कुछ अलग ही होता है। जब लिखना चालू किया था तो तेज़ झमा झम बारिश थी और अब बारिश रुक गई।वो तेज़ बारिश एक अलग ही एहसास करा देती है जो आमतौर पर ऐसा हर मौसम में नहीं महसूस होता मुझे।पता नही आपने भी ऐसा महसूस किया होगा की नहीं जहां तक मेरा खयाल है किया ही होगा। तेज़ बारिश जैसे ध्यान हो जाती है मेरे लिए।मन एकाएक सब सोचने लगता है और फिर सबसे कट जाता है।तेज़ बारिश कहीं मन भटकने नही देती।लगता है जैसे बस यही बैठी रहू बारिश को ताकते हुए। इतने सवाल थे मन में,इतना बैचैन था मन ।कुछ ठेस पहुंचे हुए किस्से।कुछ झूटी बातें। जैसे मन भागना चाह रहा था,लड़ना चाह रहा था,पूछना चाह रहा था अनेक चीजे। पर अब बारिश थम रही है पहले से बहुत धीरे हो गई है। जैसे तेज़ तूफान के बाद की शांति, बिसरा सन्नाटा।उसकी खुबसूरती भी बहुत अलग होती है न। चारो तरफ शांति,धीमी धीमी गति, कहीं झींगुर की आवाज़। सब कुछ धुल जाता है। सब कुछ बह जाता है।मन भी भीग गया इस बारिश में।सब कुछ जैसे धुल गया । आज फिर से एहसास हुआ ऊपरवाले से रिश्ता हो तो वो सुनता भी है और साथ भी देता है । ऊपरवाले से मतलब किसी मूरत से नहीं।बल्कि प्रकृति से है,चेतना से है।आप का उच्च स्व ही सब कुछ है।वो कहते है न इंग्लिश में योर हायर सेल्फ। सब कुछ तो मन की उपज है और सब निवारण तो अपने अंदर ही है।बस भटक जाती हूं कहीं न कहीं शायद। ऐ बारिश तेरा शुक्रियां। मुझे दुबारा संभालने के लिए । बिखरने से बचाने के लिए ।

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